Friday, 5 June 2015

यह ज़िन्दगी भी अजीब है , 

हर पल एक नया मोड़ लेती..

  हर मोड़ पैर एक मंजिल खिलती है।  

हर मंजिल पर एक कल छोड़ देती है ,

हर पल उस कल से ख़ुशी मिलती  है।  ………………

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Wednesday, 3 June 2015

वो दास्तान ही नहीं जो अधूरी रह जाए,

वो अरमान ही नहीं जो नींद न   उड़ाए। 

अरे ! मंजिल भी रुलाती है मुकम्मल होने से पहले ,

तो वो हौसला ही कैसा , जो आंसुओ से टूट जाए……

 

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वो  दरिया भी रोएगी ,वो अंबर भी रोएगा। 

ये ज़मीन भी रोएगी , वो पत्थर भी रोएगा। 

फैला दूंगा इतनी कशिश ज़माने में ,

कि मेरी मौत पर , मेरा कातिल भी  रोएगा  …………


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