Monday 7 September 2015

ज़िन्दगी को अपनी  महफ़िल  मानकर सारी ज़िन्दगी कुर्बान कर दी ,,

फिर पता चला कि उस महफ़िल  ने अपनी मंजिल के लिए

 हमारी ज़िन्दगी रुस्वा कर दी ....... ॥॥॥॥॥ 

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Wednesday 2 September 2015

मंजिल फ़िराक में होती हैं एक मुसाफिर के,
अब बस ये नसीब का फैसला है कि , 
मंजिल मुझे चुनेगी या मई मंजिल को  . . . ॥॥॥। 
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Friday 24 July 2015



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 लव्ज़ों की हिफाज़त से मैं रखता हुँ 

      कुछ बाते चुराकर,

क्या पता कब वक़्त उन्हें दफना दे

 बीती यादे बनाकर

Friday 5 June 2015

यह ज़िन्दगी भी अजीब है , 

हर पल एक नया मोड़ लेती..

  हर मोड़ पैर एक मंजिल खिलती है।  

हर मंजिल पर एक कल छोड़ देती है ,

हर पल उस कल से ख़ुशी मिलती  है।  ………………

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Wednesday 3 June 2015

वो दास्तान ही नहीं जो अधूरी रह जाए,

वो अरमान ही नहीं जो नींद न   उड़ाए। 

अरे ! मंजिल भी रुलाती है मुकम्मल होने से पहले ,

तो वो हौसला ही कैसा , जो आंसुओ से टूट जाए……

 

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वो  दरिया भी रोएगी ,वो अंबर भी रोएगा। 

ये ज़मीन भी रोएगी , वो पत्थर भी रोएगा। 

फैला दूंगा इतनी कशिश ज़माने में ,

कि मेरी मौत पर , मेरा कातिल भी  रोएगा  …………


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Saturday 30 May 2015

राहों को मंजिल समझ कर ,

हम मुसाफिर बन गए।  

फिर पता चला  ऐ खुदा……

  

की इश्क़  में तेरी  देहलीज़  के ,

हम इबादत के मरीज़ बन गए।  



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